कव्वाली संगीत का सिर्फ एक फॉर्म नहीं बल्कि उससे बढ़कर विधा है. सैकड़ों सालों की यात्रा करके ये हम तक पहुंची. ख़ानकाहों और दरगाहों के आंगन में पली बढ़ी कव्वाली ने फ़िल्मों तक में जादू बिखेरा है. इस कला में ऐसा क्या है जो इसे आज तक ज़िंदा रखे है, 'पढ़ाकू नितिन' में बता रहे हैं सिकंदराबाद घराने के देश-विदेश में मशहूर कव्वाल यूसुफ खान निज़ामी.
Disclaimer: इस पॉडकास्ट में व्यक्त किए गए विचार एक्सपर्ट के निजी हैं.