
कल्पना कीजिए, साल 1970 का दशक। इमरजेंसी का दौर। एक निडर पत्रकार बेखौफ होकर सरकार के खिलाफ आग उगलते लेख लिख रहा है। जब ऊपर से दबाव इतना बढ़ गया कि नौकरी छोड़नी पड़ी, तो उसने हार नहीं मानी। सीधे पहुंच गया जयप्रकाश नारायण के पास, जिन्होंने उस वक्त इंदिरा गांधी की कुर्सी हिला रखी थी।
जेपी ने उसे सलाह दी,
“कुछ ऐसा करो कि रिटायर हो रहे हमारे सैनिकों को सम्मान के साथ रोजगार मिले।”
बस इसी एक सलाह से 1974 में जन्म हुआ एक छोटी-सी सिक्योरिटी कंपनी का, नाम रखा SIS, यानी Security and Intelligence Services (India)।
आज, 50 साल बाद वही SIS:
- भारत और ऑस्ट्रेलिया की नंबर-1 सिक्योरिटी सर्विसेज कंपनी
- न्यूज़ीलैंड में तीसरे और सिंगापुर में पांचवें नंबर पर
- NSE में लिस्टेड
- 3 लाख से ज्यादा कर्मचारी, यानी TCS, Infosys और Reliance के ठीक बाद चौथे नंबर पर - भारत की सबसे बड़ी एम्प्लॉयर
आपने कभी न कभी किसी मॉल, सोसाइटी या ऑफिस के गेट पर “SIS” का बैज लगाए गार्ड को जरूर देखा होगा। लेकिन हैरानी की बात ये है कि TCS, Infosys, Reliance तो हर कोई जानता है, पर SIS के बारे में हममें से ज्यादातर लोग आज भी अनजान हैं। इस गुमनाम दिग्गज की पूरी कहानी अब एक किताब में आ गई है, किताब का नाम है The SIS Story और लेखक हैं प्रिंस मैथ्यू थॉमस. यही प्रिंस थॉमस, पढ़ाकू नितिन के इस एपिसोड में हमारे मेहमान हैं. सुनिए पूरा पॉडकास्ट
प्रड्यूसर: मानव देव रावत
साउंड मिक्स: अमन पाल