पास लेकर जैसे ही हम दरवाज़े पर पहुंचे तो एक दरबान ने मुझे रोका। मैंने उसे पास दिखाया तो उसकी आंखों में अजीब सी चमक आ गयी। उसने मेरे चेहरे को ग़ौर से देखा और पूछा, "आप मसूद हैं?" मेरे पास झूठ बोलने के अलावा और क्या चारा था। मैंने कहा, "जी हां" बस मेरा इतना ही कहना था कि वो आदमी मुझे खींचते हुए बोले, "गज़ब करते हैं भई, आप का यहां इतना इंतज़ार हो रहा था और आप पता नहीं कहां घूम रहे हैं। चलिए अंदर, जल्दी चलिए" वो हमें खींचते हुए ले गया और अंदर जाकर बोला, "लीजिए आ गए मसूद साहब" वहां बैठा एक दूसरा शख्स अचानक उठ खड़ा हुआ और मेरी तरफ जोकर वाले कपड़े फेंकते हुए बोला, "लीजिए, इसको जल्दी से पहन लीजिए बाकी सब तैयारी हो गई है.. और हां, ज़रा वक्त की पाबंदी करना सीखिए, ऐसे काम नहीं चल पाएगा" मैं जब तक उसको बोलता कि मैं कौन हूं तब तक ऐलान हुआ, "हाज़रीन, मसूद साहब आ गए हैं और अब वो अपने जिस्म में आग लगाकर सौ फीट ऊपर से कूद कर दिखाएंगे" - सुनिए शौकत थानवी की लिखी एक मज़ेदार कहानी 'छलांग' स्टोरीबॉक्स में