एक वक्त था जब तुर्की भारत का करीबी माना जाता था, व्यापार, पर्यटन और संस्कृति—हर मोर्चे पर रिश्ते मज़बूत हो रहे थे. वही तुर्की भारत के लिए एक कूटनीतिक और वैचारिक चुनौती बनता जा रहा है. चाहे कश्मीर का मुद्दा हो या संयुक्त राष्ट्र का मंच—तुर्की अक्सर पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखता है. एर्दोगान अब सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक ऐसी विचारधारा के प्रतिनिधि हैं जो 'खिलाफ़त' को नई ज़मीन देना चाहती है, दक्षिण एशिया तक.
तो सवाल ये है—
क्या तुर्की का ये रुख सिर्फ डिप्लोमेसी है या कोई गहरा एजेंडा?
क्या तुर्की-पाकिस्तान-चीन की तिकड़ी भारत के लिए नई चुनौती बन रही है?
आज पढ़ाकू नितिन में हमारे साथ हैं वरिष्ठ पत्रकार और विदेश मामलों के जानकार प्रकाश के रे. बात करेंगे एर्दोगान की रणनीति, तुर्की की वैचारिक राजनीति और इसके असर पर भारत, पाकिस्तान और इज़रायल जैसे देशों के साथ, सुनिए 'पढ़ाकू नितिन' में