इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विलियम ग्लैडस्टन ने कहा था—“Justice delayed is justice denied.” यानि अगर न्याय मिलने में देर हो जाए, तो समझिए वो मिला ही नहीं, अब भारत की हकीकत देखिए—हाई कोर्ट में औसतन 5 से 6 साल लगते हैं फैसले में और ज़िला अदालतों में तो 10 साल तक भी. पटना हाई कोर्ट में एक केस को सुनने का औसत समय? सिर्फ़ दो मिनट! ऐसे में आम आदमी की ज़िंदगी अदालतों के चक्कर लगाते ही बीत जाती है. 'पढ़ाकू नितिन’ के इस एपिसोड में हम बात कर रहे हैं न्याय में देरी की उस गंभीर समस्या की, जो लोगों का सिस्टम से भरोसा तोड़ रही है. हमारे साथ हैं ‘तारीख़ पर जस्टिस’ किताब के लेखक प्रशांत रेड्डी और चित्राक्षी जैन, जो बताएंगे जजों की कमी और उनकी बढ़ती उम्र क्यों है चिंता की बात, ज़िला अदालतों के जज किससे डरते हैं, और न्यायपालिका में पारदर्शिता की इतनी कमी क्यों है.
Disclaimer: इस पॉडकास्ट में व्यक्त किए गए विचार एक्सपर्ट के निजी हैं.