'खालिस्तान' आजकल खूब ट्रेंड में है, लेकिन ये शब्द आजकल का नहीं है और ना ही ये मूवमेंट. इसके बीज सौ साल से भी पहले पड़े थे और सच ये है कि खालिस्तान के मायने वक्त गुज़रने के साथ बदलते रहे. 'पढ़ाकू नितिन' में इंडिया टुडे मैग्ज़ीन के डिप्टी एडिटर अनिलेश एस महाजन ने खूब सरलता से इस जटिल मुद्दे के सारे पहलू खोलकर रख दिए.
सोना ख़रीदकर घर में रखना क्यों घाटे का सौदा है?: पढ़ाकू नितिन, Ep 180