
एक दौर था जब दास्तानगो शहर- शहर कहानी, किस्सों, दास्तान के खज़ाने लुटाया करते थे. लोग उन्हें घेरे रहते. कहानी कहने का उनका स्टाइल दिल में उतर जाया करता था. वक्त बदला और ये विधा फीकी पड़ती गई. दास्तानगोई खुद दास्तान बन गई. ये दिलचस्प कला कहां से भारत आई, कैसे यहां हिट हुई और क्यों फिर भुला दी गई आज पढ़ाकू नितिन में यही जानेंगे. इस सफर पर निकलेंगे तो कई कहानियां सुनने को मिलेंगी. नितिन ठाकुर के साथ बैठकी में हैं हिमांशु वाजपेयी जो देश-विदेश के जाने माने किस्सागो हैं. लखनऊ के दीवाने ये साहब अपने प्यारे शहर पर किताब लिख चुके हैं और किस्सागोई की विधा के लिए राष्ट्रपति तक से सम्मान पा चुके.
इस पॉडकास्ट में सुनिए:
- दास्तानगोई की शुरूआत कहां से हुई थी?
- दास्तानगोई में क्या ऐसा है जो उसे अलग करता है?
- भारत में दास्तानगोई कब आई और रूप क्या बना?
- कौन सी दास्तानें आज तक मशहूर हैं?
- चंद्रकांता संतति किस मशहूर दास्तान से प्रभावित था?
- दास्तानगोई किन संघर्षों से गुज़री है?
- एक दास्तानगो की मुश्किलें क्या हैं?
- दास्तानगो बनने के लिए क्या हुनर ज़रूरी हैं?

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