हमको साइकिल चलाना तो आता था लेकिन साइकिल पर चढ़ने में अभी कच्चे थे। तो अगर कोई बैठा देता था तो फिर हम साइकिल के राजा हो जाते थे। निकल जाते थे सड़क पर और सवा किलोमीटर दूर भी अगर कोई दिख जाता तो चीखने लगते कि "ऐ हट जाओ सामने से... अरे दिखाई नहीं देता क्या, साइकिल चला रहा हूं... हट जाओ" ... सुनिए सुदर्शन जी की लिखी कहानी 'साइकिल की सवारी' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से.