1984.. एक ऐसा साल जिसे ना कभी इंडियन पॉलिटिक्स भूली.. ना भूला इंडिया, ना कभी पंजाब. इस साल दिल्ली, कानपुर, फिरोज़ाबाद, अमृतसर में सिखों का जो खून बहा उसकी कहानी इन 40 सालों में कई बार कही गई.. मगर फिर भी जिनकी कहानी रह गई वो हैं सिख महिलाएं. कितनी ही ऐसी औरतें थीं जिन्होंने अपनों को हत्यारों के हाथों मरते देखा. खुद पर बलात्कार सहे. जान बचने के बाद ताने सुने... मगर फिर भी वो इंसाफ के लिए लड़ती रहीं.. इन कहानियों को पहली बार सामने लाए हैं एडवोकेट सनम सुतीरथ वज़ीर,उनकी किताब है The Kaurs of 1984. इस किताब को लिखने के लिए सनम दंगापीड़ितों के घर गए. उनसे मिले. उनकी कहानियां कई सालों तक सुनी जिसे सनम से 'पढ़ाकू नितिन' में पूछेंगे...
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