महात्मा गांधी की विशाल छवि के पीछे जाने- अनजाने कस्तूरबा छिपी रह गईं. वही थीं जिन्होंने मोहन को महात्मा बनते देखा लेकिन उनके बारे में बहुत कम जाना गया. पिछले दिनों कस्तूरबा की एक गुम हो चुकी डायरी उनके पड़पोते तुषार गांधी के हाथ लगी. उन्होंने उस पर एक किताब भी लिखी. इस बार के 'पढ़ाकू नितिन' में तुषार ने इत्मीनान और विस्तार से अपनी पड़दादी कस्तूरबा को याद किया. उन्होंने बताया कि कस्तूरबा की सीमाएँ क्या थीं, गुण क्या थे, मजबूरियां क्या थीं, ज़िद क्या थी और धर्मसंकट क्या थे.
- कस्तूरबा अपने पति के पीछे चलने वाली अनुयायी भर थीं?
- गांधी की वैचारिक विरासत का बोझ ढोना कस्तूर की मजबूरी थी?
- कस्तूरबा खुद कभी एक्टिव पॉलिटिक्स में क्यों नहीं आईं?
- गांधी-कस्तूरबा के बीच किस बात पर झगड़े होते थे?
- हरिलाल क्यों ‘गांधी के सबसे बिगड़ैल बेटे’ थे?
- क्या गांधी कस्तूरबा से राजनीतिक सलाह लेते थे?
Disclaimer: इस पॉडकास्ट में व्यक्त किए गए विचार एक्सपर्ट के निजी हैं. आज तक रेडियो इसका अनुमोदन नहीं करता.
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