सत्रहवीं शताब्दी के आसपास यूरोप की लगभग एक चौथाई आबादी को टीबी ने लील लिया. अमेरिका में उस वक्त हर सात में से एक व्यक्ति की मौत टीबी से होती थी. 1930 के दशक में भारत में टीबी की बीमारी से लगभग 20 लाख लोगों की जान गई. टीबी. दुनिया के हर देश को अपनी चपेट में लेने वाली सबसे जानलेवा और रहस्यमय बीमारी. इसके बारे में ना कोई समझ थी न ही कोई इलाज.मानव इतिहास की सबसे पुरानी बीमारी. विज्ञान की भाषा में कहें तो बैक्टीरिया से होने वाला ड्रॉपलेट इन्फेक्शन, जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से फैलता है. टीबी क्या है, और यह कैसे फैलता है? इसके मुख्य लक्षण क्या हैं, और किन लक्षणों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए? क्या यह रोग केवल फेफड़ों तक सीमित होता है, या शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं? टीबी की पहचान के लिए कौन-कौन सी जांचें की जाती हैं? क्या एक्स-रे और बलगम जांच के अलावा कोई नई तकनीक उपलब्ध है? टीबी का सही और समय पर निदान क्यों महत्वपूर्ण है? टीबी का इलाज कितने समय तक चलता है, और मरीज को दवा नियमित रूप से लेना क्यों ज़रूरी है? टीबी की दवा का कोर्स अधूरा छोड़ने से क्या खतरा हो सकता है? टीबी से बचाव के लिए कौन-कौन से टीके उपलब्ध हैं? क्या टीबी का मरीज दूसरों को संक्रमित कर सकता है? ऐसे में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? टीबी के मरीज को परिवार और समाज से किस तरह का सहयोग मिलना चाहिए? टीबी के मरीज को किस तरह का खानपान रखना चाहिए? क्या टीबी का इलाज करवा रहे व्यक्ति को कोई खास परहेज करना चाहिए? क्या टीबी का पूरी तरह से इलाज संभव है या यह दोबारा भी हो सकता है? मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (MDR-TB) क्या है और इसका इलाज कितना जटिल है? क्या टीबी की दवा के कोई साइड इफेक्ट्स होते हैं? इन सवालों के जवाब और टीबी से जुड़ी सारी जानकारी जानिए फोर्टिस हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉक्टर मयंक सक्सेना से.
प्रड्यूसर : अतुल तिवारी
साउंड मिक्स : रोहन
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