तीन ताल के 105वें एपिसोड में कमलेश 'ताऊ', पाणिनि ‘बाबा’ और कुलदीप ‘सरदार' से सुनिए:
-सुर और सूर का फ़र्क़. अमीरों की जलती है तो क्यों वो परफ्यूम बन जाती है?
-ताऊ नहीं बोलने को कैसे डील करते हैं? टेस्ला के बहाने तसले पर चर्चा और तसले के शहरी उपयोग.
-वीकेंड जोक्स. ताऊ ने क्यों बालू माफिया को मोरंगजेब कहा.
-मशाल और तलवार-ढाल वाले चुनावी चिह्नों के बहाने देसी सिम्बल्स की कहानी.
-पेंटर और आर्टिस्ट का फ़र्क़. दीवार पर चुनाव चिह्न बनाने की कला. गाय पर निबंध.
-ऑटो, बस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बजने वाले लो बजट नॉन फिल्मी म्यूजिक पर बात.
-क्यों बाबा ने 'बेबी बियर पी के नाचे' गाने को प्रोग्रेसिव बताया. बालेश्वर यादव, शारदा सिन्हा और गुड्डी गिलहरी का अंदाज़.
-ताऊ, बाबा की आवाज़ में बालेश्वर यादव के गाने. सरदार की आवाज़ में कहां गौ चीलम तम्बाकू को डब्बा, मेरी जानू मुस्कुरा दे.
-वो समय जब गीत सार्वजनिक से व्यक्तिगत होता था. भोजपुरी, बुंदेली और दूसरे देसी संगीत गायन.
-बदन पर लगाने वाले शैम्पू. दुर्दांत तेल, बुरुश,
और साबुन की यादें.
-बिज़ार ख़बर में मुर्गा और शराब बांटने वाले नेता को ताऊ का समर्थन, साथ ही एक छोटी सी चिंता. ओवैसी साहब का क.
-और आखिर में प्रिय तीन तालियों की चिट्ठियां.
प्रड्यूसर - शुभम तिवारी
साउंड मिक्सिंग - नितिन रावत
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