- होली के जोगीरे और ताऊ की कविता
- 'मोमिनों रोज़े रखो' जैसे आधुनिक त्योहारी गीत
- होली की बदमाशी, आलस और मता जाने की क्रिया
- लउआ अलंकार, होली की थकान और बेहोशी
- बजुर्गों की विसडम और सिखावन
- लठ मार लॉजिक और फ्री का फ़लसफा
- 'जाने दो' की उदारता
- लोक का विसडम और आंखों की शर्म
- मर्डर कूपन का सही इस्तेमाल करने 'इस्तेमाल' हो जाने की कल्पना
- खां चा के अतरंगी खयाल और जेन ज़ी जोगीरे
- चिट्ठियां
प्रड्यूसर : अतुल तिवारी
साउंड मिक्स : सूरज
मनाही का मज़ा, लखनऊ में लोटपोट और ईमानदार के रिबेल : तीन ताल, S2 125
लहसुन बादशाह, ठंडई की ठाठ और बनारस का बवालपुराण : तीन ताल, S2 123
निरहुआ का तेल गमकउआ, भैंस का GPS और थकान से हराशमेंट : तीन ताल, S2 122
जनगन्ना का गन्ना, फूफा के फफोले और भौकाल प्रसारण : तीन ताल S2 120
समाजवाद का आलस, झूठ का एक्शन रीप्ले और अनानास की बकवास : तीन ताल S2 119
मुनीर की भौं-भौं, बिलावल की चौं-चौं और पेट की गों-गों : तीन ताल S2 117
बाल का बतंगड़, देख-रेख के फ़साने और भर्ती के भरतमुनि : तीन ताल S2 116