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न छेड़ो हमें, हम नहाए हुए हैं | स्टोरीबॉक्स | EP 17

न छेड़ो हमें, हम नहाए हुए हैं | स्टोरीबॉक्स | EP 17

"अरे दामाद जी, उठिये। नहाइयेगा नहीं क्या"ससुर जी की आवाज़ के बाद मैंने पहले एक पैर रज़ाई से निकाल कर सर्दी के हालात का जायज़ा लिया। पैर बाहर निकालते ही पता चल गया कि स्थिति तनापूर्ण तो है ही, नियंत्रण में भी नहीं है। फ़ौरन पैर वापस खींच लिया। ये उस समय की बात है जब ठंड कड़ाके की पड़ रही थी और पूरा शहर कोहरे में लिपटा हुआ था। मैंने नहाने का प्रोग्राम आज फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया। पर जब मैं नाश्ते के लिए कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा कि ससुर जी हाथ में बाल्टी पकड़े टेढ़े-टेढ़े चले आ रहे हैं। मैं समझ गया कि मेरी शामत आ गयी है। बोले, “ये लीजिए, आप के लिए टंकी में रात का भरा हुआ पानी लाया हूं, एक दम मस्त वाला ठंडा है... आत्मा शुद्ध हो जाएगी... ये लीजिए तौलिया”

सुनिए जमशेद कमर सिद्दीक़ी से कहानी 'न छेड़ो हमें हम नहाए हुए हैं' सिर्फ स्टोरीबॉक्स में

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