अगले ही दिन पूरे मोहल्ले में खबर हो गई बकरुन-निसां कोई मामूली बकरी नहीं है, वली पीर साहब का अक्स हैं। हकीम साहब के घर में लोग पहुंचे तो देखा कि बकरुन-निसां बड़े आराम से चारपाई पर बैठी पागुन कर रही हैं, हरे रंग का मेज़पोश काटकर गले से पहना दिया गया था, सींग में चच्ची की पुरानी चूड़ियां पहना दी गयी थीं और चारों पैरों में चटा-पटी वाले दुपट्टे का लचका-गोटा बंधा हुआ था। कुछ ज़ायरीन अगरबत्ती जला कर सर झुकाए बैठे थे और एक पूछ रहा था - "हमां सउदी का वीज़ा कब लगेगा?" सुनिए कहानी - 'हकीम साहब की बकरी' - स्टोरीबॉक्स में