साल 2011 में भारत में योजना आयोग की एक् रिपोर्ट ने चौंका दिया था, रिपोर्ट में कहा गया था कि जो रोज के 35 रुपए शहर में और गाँव में 25 रुपए कमा रहे हैं वो ग़रीब नहीं हैं. बाद में सरकार ने बैक किया और कहा हम इन आंकड़ों में बदलाव करेंगे. अब सवाल ये है कि अभी के हिसाब से ग़रीब होने की परिभाषा क्या है? कैसे पता लगता है कि कौन ग़रीब है कौन नहीं, शहर और गाँव में ग़रीबी के मानकों में कितना अंतर है और आजादी के बाद अब तक इन मानकों को कितनी बार बदला गया है? सुनिए ‘ज्ञान-ध्यान’ में.