वो पाकिस्तान के रावलपिंडी की सेंट्रल जेल थी. रात के दो बज रहे थे. अप्रैल की गर्मी के बीच भी रात ठंडी थी. उस जेल की स्पेशल बैरक में एक बहुत ही स्पेशल आदमी कोने में पड़ा हुआ था. फांसी की सज़ा सुनने के बाद वो दिन-रात गिन रहा था. इस सज़ा से महज़ दो साल पहले तक वो शख्स पाकिस्तान का वज़ीर-ए- आज़म था. पाकिस्तान में होने जा रही ये ऐसी फांसी थी जिसे रोकने के लिए पूरी दुनिया अपील कर चुकी थी. आखिरकार उसे नकाब पहनाकर गले में फंदा डाला गया. करीब 2 बजकर 40 मिनट पर जल्लाद ने लीवर खींचा.थोड़ी देर तक उस जिस्म ने हरकत की और फिर शांत पड़ गया. अब वो लाश थी. लाश पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की. उन्हें ऐसी मौत तक पहुंचानेवाले का नाम था जनरल ज़िया उल हक.
सुनिए पाकिस्तान के तानाशाह ज़िया उल हक़ की पूरी कहानी 'नामी गिरामी' में नितिन ठाकुर से..
प्रोड्यूसर- रोहित अनिल त्रिपाठी
साउंड मिक्स- सचिन द्विवेदी