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ग़ालिब की शायरी से 1857 की लड़ाई का ज़िक्र क्यों गायब है?: नामी गिरामी, Ep 212

ग़ालिब की शायरी से 1857 की लड़ाई का ज़िक्र क्यों गायब है?: नामी गिरामी, Ep 212

एक किस्सा है. 1857 के आसपास का. अंग्रेज किसी भी शर्त पर तहरीक ए आज़ादी की हर आवाज को दबाना चाहते थे और इसकी जद में वो मुसलमान भी आए जो मुग़लों के करीबी थे। शक था कि कहीं इनकी मदद से मुग़ल फिर से ना खड़े हो जाएं. दिल्ली के बल्लीमारान इलाके का एक मुसलमान इस समय के खून खराबे से दुखी था. शायरी करता ही था लेकिन इस दौर को भी अपनी डायरी में दर्ज करता रहा. और एक दिन उसकी हवेली पर भी दस्तक हुई. वो शख्स बाहर आया. सामने अंग्रेज़ सिपाहियों की एक टोली खड़ी थी। उसके सिर पर टोपी, शरीर पर हाथ से बनाया हुआ एक चोंगा और उस चोंगे पर झूलता हुआ इजारबंद था. एक अंग्रेजी अफसर ने उससे पूछा   "तुम्हारा नाम क्या होता?"उस शख्स ने अपना नाम बताया. अंग्रेज़ ने फिर पूछा -"तुम लाल किला में जाता होता था?"उसने जवाब दिया -"जाता था मगर-जब बुलाया जाता था."अंग्रेज़ ने फिर पूछा -क्यों जाता था? उसने कहा -अपनी शायरी सुनाने
अंग्रेज़- "यू मीन तुम पोएट होता है?"
उसने कहा - होता नहीं, हूँ भी. अंग्रेज़ अब अपने असल सवाल पर आया - तुम का रिलीजन कौन सा होता है?"
उस शख्स ने सर झुकाया और कहा  -आधा मुसलमान.
"वॉट" अंग्रेज़ चौंक गया। उसको इस जवाब की उम्मीद कतई नहीं थी।  नाराज़गी से बोला "आधा मुसलमान क्या होता है?"
वो शख्स मु्स्कुराया और सर उठाते हुए बोला, – वही जो शराब पीता है लेकिन सुअर नहीं खाता"

अंग्रेज़ एक पल उनके चेहरे को देखा और फिरज़ोर का ठहाका लगाया। उसे ये जवाब इतना मज़ेदार लगा कि उसने इस हाज़िर जवाब शख्स को छोड़ दिया। ये आधा मुसलमान शख्स वही था.. जो कहता था कि रगों में दौड़ते रहने के हम नहीं कायल... जो आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है। एक शख्स जिसने उर्दू और फारसी को नयी ज़मीन और नया आसमान बख्शा ... एक ऐसा शायर जिसके पास ज़िंदगी के हर नर्म और नुकीले एहसास के लिए एक शेर मौजूद है - उस शख्स का नाम है - असदउल्ला बेग ख़ान  और दुनिया उसे कहती है मिर्ज़ा ग़ालिब...सुनिए ग़ालिब के सुने-अनसुने किस्से इस एपिसोड में. 

प्रोड्यूसर - रोहित अनिल त्रिपाठी 
साउंड मिक्स - सचिन द्विवेदी.

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