ये साल 2007 था. भारत में तब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार अपना पहला कार्यकाल पूरा कर रही थी. पाकिस्तान में ये वक्त परवेज़ मुशर्रफ का था. तख्तापलट कर सत्ता में आए मुशर्रफ के शासन का ये आखिरी साल था क्योंकि वहाँ कुछ ऐसा होने जा रहा था जो मुशर्रफ पर सत्ता छोड़ने का दबाव बनाने वाला था. सेना और मुशर्रफ के खिलाफ बोलने वाले वैसे तो कई थे जो पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार चाहते थे लेकिन एक औरत जो इस देश की प्रधानमंत्री भी रह चुकी थी और अब सीना ताने सैन्य शासन के विरोध में खड़ी थी. वही मुशर्रफ के इस शासन में आखिरी कील भी ठोंकने जा रही थी. 7 अक्टूबर को जब वो ये औरत एक कार्यक्रम के बाद पेशावर से इस्लामाबाद पहुंची तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने इन्हें आगाह किया कि आपकी जान को खतरा है. कल आपका जहां कार्यक्रम है वहाँ आप पर हमला बोला जा सकता है.
उस महिला ने कहा तो आप हमारी सुरक्षा क्यों नहीं बढ़ा देते? और यही कह कर सारी बहस खत्म कर दी. अगले दिन लाखों की भीड़ में वो औरत रावल पिंडी के लियाकत बाग जा रही थी. रास्ते में भीड़ इतनी थी कि उन्होंने अपनी कार की रुफ़ खोल कर खड़ा हो जाना बेहतर समझा. वो सबसे अभिवादन करते हुए बढ़ ही रही थी लेकिन किसे पता था कि महज कुछ सौ मीटर दूर जाने का ये सफर उस औरत का आखिरी सफर होगा. उसी भीड़ में एक शख्स निकलता है जो हाथ में पिस्टल लिए हुए था. वो इस औरत की गाड़ी के नजदीक जाता है. और पिस्टल निकाल कर ताबड़तोड़ तीन गोलियां बरसा देता है. उस औरत के सिर पर ये गोलियां बरसाई गई थीं. इसके बाद उस शख्स ने वहीं पर बम से अपने आप को भी उड़ा लिया. चारों ओर अब लाशें दिखने लगी थी. इस गाड़ी का ड्राइवर जहां गोली लगने से ये औरत पड़ी हुई थी, पहियों के रिम के सहारे लोगों की लाशों पर गाड़ी चढ़ा कर वहाँ से ले गया – लेकिन सब जानते थे देर बहुत देर हो चुकी है. ये औरत थी पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो. सुनिए उनकी पूरी कहानी 'नामी गिरामी' में.
प्रोड्यूसर - रोहित अनिल त्रिपाठी
साउंड मिक्स - कपिल देव सिंह
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