पिछले बुध की शाम हमारा सदर के एक नामी होटल में जाना हुआ। वेटर लपक कर आया। हमने पूछा, “क्या है?” बोला, “जी अल्लाह का दिया सब कुछ है!” हमने कहा, “खाने को पूछ रहे हैं, ख़ैरीयत दरयाफ़्त नहीं कर रहे क्योंकि वो तो तुम्हारे रोग़नी तन-ओ-तोष से वैसे भी ज़ाहिर है।” कहने लगा, “हलीम खाइए, बड़ी उम्दा पकी है। अभी अभी मैंने बावर्चीख़ाने से लाते में एक साहिब की प्लेट में से एक लुक़मा लिया था।” सुनिए उर्दू के मशहूर कलमकार इब्न ए इंशा की लिखी कहानी - 'बटेर की निहारी' स्टोरीबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से