मेरे बड़े भाई साहब उम्र में मुझसे पांच साल बड़े थे लेकिन सिर्फ तीन क्लास आगे थे। वो दिन भर पढ़ते रहते थे और कहीं मुझे सड़क पर लड़कों के साथ खेलते देख लिया तो डांट लगाते थे। कहते "इन बाज़ारी लड़कों के साथ खेलते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें? मुझे देखो मैं कितना पढ़ता हूं, मुझसे कुछ सीखते क्यों नहीं तुम?" कई बार तो ये भी कह चुके थे कि अगर पढ़ाई में मन नहीं लगता तो वापस चले जाओ, क्यों पैसे ख़राब करते हो? लेकिन जब रिज़ल्ट आया तो भैय्या फेल हो गए थे और मैं पास। - सुनिए मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी 'बड़े भाईसाहब' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से 'स्टोरीबॉक्स' में.