शहर में हर तरफ़ कोहराम मचा था, हर घर से रोने पीटने की आवाज़ें गूंज रही थीं। वो एक अजीब वायरस था, जो कैसे फैला और उसे कैसे रोका जाए किसी को नहीं पता था। एंबुलेंस की आवाज़ों से सड़क बार-बार चौंक जाती थी। जिस वक्त शहर में सब हो रहा था ठीक उसी वक्त शहर के सबसे पॉश एरिया में बने टैगोर सभागार में कुछ लेखकों और चिंतकों का सेमिनार हो रहा था। माइक पर थे छियालीस साल के कुमार साहब और उनके ज़हन में था मैकू, वही मैकू जो उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल सवाल उनसे पूछने वाला था।